अम्मी ने भी अपने यार के सामने मुझे खुद ही पेश किया था। अगर मैं उनका यार बाँट सकती हूँ, तो शौहर क्यों नहीं।आज अब्बा मुझे कुछ ज़्यादा ही प्यारे लगने लगे थे। रात को जब हम सब खाना खाने बैठे तो मैं अपने अब्बा के बिल्कुल सामने बैठी, और बार बार उन्हें ही देखती रही, मगर अब्बा मेरे से नज़रें चुरा रहे थे। खाने के बाद मैंने अम्मी को दोपहर वाली बात बता दी।तो अम्मी ने कहा- तो क्या चाहती है तू?मैंने कहा- मैं तो कुछ नहीं चाहती।अम्मी बोली- देख तुझे नन्हे दे तो दिया, तो तू उस से मज़े कर, और मुझे तेरे अब्बा से मज़े करने दे। मैं चुप रही मगर मैं दिल ही दिल में सोच रही थी कि काश अब्बा भी मुझ पर मेहरबान हो जाएँ। छोटी उम्र से चुदने के कारण अब मुझे किसी भी मर्द में सिर्फ उसका मजबूत लंड ही नज़र आता था। मुझे अब अपने किसी भी रिश्ते की कोई परवाह नहीं रही थी।मेरा भाई मेरे साथ ही सोता था, कई बार मैंने उसके सोते हुये उसकी निकर के ऊपर से ही उसकी लुल्ली पकड़ कर देखी, कभी कभी उस से खेली और वो खड़ी हो गई। मैंने एक दो बार कोशिश की किसी तरह उसकी लुल्ली उसकी निकर से बाहर निकाल लूँ और उसके साथ खेल कर देखूँ, उसे चूस कर देखूँ,















