नहीं अंकल, मैं आप को पेग बना कर देती हूं.”मैं धीरे धीरे चलकर किचन टेबल तक गयी। मैं पैरों को पास पास रखकर चल रही थी जिससे खीरा नीचे गिरे नहीं और पैरों के नीचे से पैंटी भी खींच के ले जा रही थी कि जब भी मौका मिले उसको उठा लूं। पर चलते हुए खीरा मेरी चुत में अजब तरीके से रगड़ खा रहा था और मुझे और उत्तेजित कर रहा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.मैं गिलास लेने लगी पर वह ऊपर के शेल्फ में था, मुझे डर था गिलास को निकालते वक्त खीरा नीचे न गिर जाए। मैं पैरों की उंगलियों पर खड़ी रहकर प्रयास करने लगी, मेरी हर हलचल से खीरा मेरी चुत की दीवारों पर रगड़ खा रहा था और हर बार अलग उत्तेजना पैदा कर रहा था। अचानक मुझे मेरे नितम्ब पर कुछ कड़क महसूस हुआ, मैंने डर कर पीछे देखा तो मौसा जी मेरे पीछे खड़े थे।“हाथ नहीं पहुंच रहा था तो बोल देती… मैं निकाल देता हूँ गिलास!”उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और आगे सरकते हुए शेल्फ से गिलास निकाला, मैं मौसा जी और टेबल के बीच में सैंडविच की तरह दब गई। गिलास निकालते वक्त उनका हथियार मेरे गांड पर मजे से रगड़ खा रहा था, मैं भी बड़े दिनों के बाद मिल रहे लंड के










