फिर एक ठोकर में उसने मेरी खुली हवा में फैली चूत में अपना लंड ठूंस दिया और मेरे कूल्हों को थाम कर बेरहमी से धक्के लगाने शुरू कर दिए।जब मैं वापस फिर अपने चरम पर पहुँचने लगी तो इस बार अपना मुँह बंद न रख पाई। “और ज़ोर से मनोज और ज़ोर से… हाँ-हाँ ऐसे ही… मनोज ऐसे ही… और और… फक मी हार्ड… कम ऑन , बास्टर्ड फक मी हार्ड…!” “लो और लो मेरी जान शहनाज़… यह लो… पर यह पीछे वाला छेद भी चखूँगा… इसे भी चोदूँगा… बोलो न शहनाज़, डालने दोगी ना?” “हाँ हाँ… उसे भी मत छोड़ना… डाल देना उसमें भी !”उसने धक्के लगाते-लगाते अपनी एक उंगली मेरी गांड में सरका दी और साथ में उसे भी अन्दर-बाहर करने लगा… इससे धक्कों की तूफानी रफ़्तार कुछ थम सी गई। “गांड में कुँवारेपन का कसाव नहीं है शहनाज़ जान, मतलब इसमें भी डलवाती हो न!” “हाँ… हाँ…पर तुम कल कर लेना इसमें… वादा करती हूँ… पर आज आगे ही करो प्लीज़।” “नहीं, आज ही, कल का क्या भरोसा… अभी वक़्त है, एक राउंड अभी और हो जायेगा। जल्दी बोलो !”“नहीं, आज नहीं कल… अब करो न ठीक से।” “आज, वरना…!” उसने एकदम से अपना लंड बाहर निकाल लिया और भक की आवाज़ हुई। मैं तड़प कर रह गई… मैंने घूम कर उसे देखा। वो अजीब सौदेबाज़ी वाले अंदाज़ में















