अब मैं चाय नहीं बनाऊँगी आपको जाना है तो जाओ।”“ओह…हो… मेरी बुलबुल नाराज हो गई, चलो मैं बुलबुल को चाय बनाकर पिलाता हूँ।” अभिषेक ने कहा।उनका इस तरह प्यार से बोलना मुझे बहुत ही अच्छा लगा… और चाय तो 11 सालों में मुझे कभी सचिन ने भी नहीं पिलाई, उनको तो चाय बनानी आती भी नहीं। मैं तो यही सोचती रही, तब तक अभिषेक उठ कर रसोई की तरफ चल दिये।मैंने कहा, “ठीक है आज चाय आप ही पिलाओ।”अभिषेक बोले, “मैं चाय बनाकर पिलाऊँगा तो क्या तोहफ़ा दोगी?”“अगर चाय मुझे पसन्द आ गई तो जो आप मांगोगे वो दूंगी और अगर नहीं आई तो कुछ नहीं।” मैंने कहा।“ओके…” बोल कर वो गैस जलाते हुए बोले, “तुम बस साथ में खड़ी रहो, क्योंकि रसोई तुम्हारी है। मुझे तो सामान का नहीं पता ना…”मैं उनके साथ खड़ी उनको देखती रही। कितनी सादगी और अपनापन था ना उनमें। मुझे तो उनमें कोई भी अवगुण दिखाई ही नहीं दे रहा था। वो चाय बनाने लगे। मैं उनको देखती रही। मुझे अभिषेक पर बहुत प्यार आ रहा था पर मैं अपनी सामाजिक बेड़ियों में कैद थी।चाय बनाकर अभिषेक कप में डालकर ट्रे में दो कप सजाकर डाइनिंग टेबल पर रखकर वापस रसोई में आये… और मेरा हाथ बड़ी नजाकत से पकड़कर किसी रानी की तरह मुझे डाइनिंग टेबल तक लेकर गये और बोले, “लीजिये मैडम, चाय आपकी












