मैं काम पे कोसे जाऊंगी.वो बोला: आंटी, काम पे थोड़ी देर से चली जाइएगा ना आप, प्लीज़ चलिए स्टॉप आ गया है। प्लीज प्लीज.अब पीछे वाला लगभग अंकिता को धक्का देते हुए प्लीज् प्लीज कहते हुए बस के आगे वाले डोर पे ले के जाने लगा, जबकि आगे वाला रास्ता बना रहा था भीड़ में। अंकिता के पैर अपने आप ही उनके साथ चले जा रहे थे, वो अपने आप पर हैरान थी परेसान थी, आखिर वो कर क्या रही है, क्यों वो उन लड़कों की बात मान रही है, आखिर वो ऐसा कैसे कर रही है एकदम अनजान लड़कों के साथ वो भी उसके बेटे की उम्र के थे, वो चली जा रही है।वो जैसे किसी सम्मोहन शक्ति में जकड़ गई थी आखिरकार प्लीज् का असर दिखाई दिया और अंकिता बस से उतर गयी। अब वो लड़का उसको सड़क से ही सामने की गली में अपना मकान दिखाया और बोला: आंटी बस वही मकान हमारा है। वो उनके साथ चलती हुई फिर से सम्मोहन से निकलने की कोशिश की, और उसने चोर नज़रों से दोनों के पैंट के सामने उभारों को देखा और उसका रहा सहा संकल्प भी टूट गया।उसकी चूत में उन उभरे हुए लिंगों को देखकर बहुत खुजली सी हुई। और वो जानती थी कि आज ये खुजली मिटाए बग़ैर उसे चैन नहीं मिलने वाला। अंकिता उन दोनों लड़कों















