मेरी उँगलियाँ संजय के खड़े, चिकनाहट से सराबोर मोटे लण्ड के इर्दगिर्द घूमने लगीं। मुझे पता ही नहीं लगा की कितनी देर हो गयी। मैं संजय के चिकनाई से लथपथ लण्ड को सहलाती ही रही। मैंने संजय की और देखा तो वह आँखें मूंदे चुपचाप मेरे उसके लण्ड सहलाने का आनंद ले रहा था।उसके चेहरे से ऐसे लग रहा था जैसे कई महीनों के बाद किसी स्त्री ने उसका लण्ड का स्पर्श किया होगा। जैसे ही मैंने उसका लण्ड सहलाना शुरू किया की संजय भी अपनी कमर आगे पीछे कर के जैसे मेरी मुट्ठी को चोदने लगा। कुछ देर बाद अचानक मैंने महसूस किया की संजय के बदन में एक झटका सा महसूस हुआ.उसके लण्ड में से तेज धमाकेदार गति से गरम गरम फव्वारा छूटा और मेरी मुट्ठी और पूरी हथेली संजय के लण्ड में से निकली हुई चिकने चिकने, गरम प्रवाही की मलाई से भर गयी। मुझे समझ नहीं आया की मैं क्या करूँ। मैंने फ़टाफ़ट अपना हाथ संजय के पतलून से बाहर निकालने की लिए जोर लगाया।बड़ी मुश्किल से हाथ बाहर निकला। इस आनन-फानन में मेरा हाथ भी संजय की पतलून से रगड़ कर साफ़ हो गया। अचानक ही एक धक्का लगा और मेट्रो झटके के साथ रुकी। मैं संजय की और देखने लायक नहीं थी और संजय मुझसे आँख नहीं मिला पा रहा था।हमारा स्टेशन आ गया था। धक्कामुक्की















