फिर नींद आ जाती और अगले दिन स्कूल में दिन भर यही बात दिमाग में घूम रही होती थी और कई बार स्कूल के बाथरूम में जाकर लौड़ा हिलाना पड़ता था। क्लास में भी फटी जेब में से लौड़े के सुपाड़े को कभी सहलाता, कभी खोलता/बंद करता और अगर चिपचिपा रस निकलने लगता, तो जेब से हाथ बाहर कर लेता।अक्सर स्कूल में अब मेरा लौड़ा हर समय खड़ा सा ही रहता था और दोपहर टिफ़िन खाने के टाइम भी मुझे अपनी डेस्क पर बैठे-बैठे ही खाना खा लेना पड़ता था। कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा, और फिर स्कूल के दिनों में दीक्षा और मैं या तो एक-आध मामूली सी बात कर लेते, या मैं दूर से उसका हाथ उसकी अपनी स्कर्ट की जेब में देख कर अपने लौड़े में सुरसुराहट महसूस कर लेता।हर रात दीक्षा हाथ से अपनी चूत से खेलती हुई तो मालूम देती ही थी। रोज़ यह भी सोचता कि उससे ऐसी-वैसी बातें करूं भी तो कैसे? XXX Hindi मेरी क्लीट में तो सोच के ही सुरसुराहट होने लगी है।”मेरा पहला तजुर्बा था 69 का। हम दोनों ही का पहला। और मुझे ताज्जुब तो इस बात का हो रहा था कि ना जाने कैसे बेहद बदमाश दीक्षा को समझ आ जाता था कि मैं झड़ने वाला था, तो वो लौड़ा मुंह में से निकाल कर मेरी बॉल्स को टाइट पकड़ लेती,










